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(भादो माझी, जमशेदपुर) झारखंड के गुमनाम नाम को ‘भ्रष्टखंड’ की विशेषज्ञता के बूते अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। कोड़ा का कारनामा विश्व से सबसे बड़े घपले-घोटालों की सूची में सबसे ऊपर दर्ज किया गया। अब एक बार फिर हजारों करोड़ की चपत का चोट बर्दाश्त कर झारखंड लड़खड़ा कर संभलने का प्रयास कर रहा है। लेकिन हालात अब भी बिल्कुल न बदले। अब भी सूबे में पालिटिक्स ‘लाइजनर्स’ के रहमो-करम पर फल-फुल रहा है। कोड़ा तो चले गए लेकिन अब ‘पालिटिकल लाइजनर’ बूढ़े गुरुजी, यानी मौजूदा वायोवृद्ध मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के कंधे पर बंदूक रख भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान स्थापित करने की जुगत लगा रहे हैं। ऐसे में अब फिर से बूढ़े गुरुजी के कंधे पर बंदूक का भार रख दिया गया है। अब देखना यह है कि भ्रष्टाचार के बंदूक से इस बार शिकार कोई और होता है, या अपने ही निजी सचिव शशिनाथ झा हत्याकांड से बाल-बाल बचे गुरुजी झारखंड के दूसरे कोड़ा साबित होते हैं।
बूढ़े कंधे पर सूबे का भार पहले से ही काफी भारी साबित हो रहा था, अब लाइजनिंग के ब्रेड में चापलूसी का बटर डाल गुमठी वाले धंधे से स्विस बैंक के खाते तक का व्यक्तिगत विकास करने वाले नटवरों पर काबू पाने का भार भी आ गया है। अपने राजनीतिक जीवन की अंतिम पारी खेल रहे गुरुजी को भी भान है कि कुछ ऊंच-नीच हुई तो उम्र की इस दहलीज पर सीधे माम घर जाना पड़ेगा। देश की सबसे ‘पावरफुल पार्टी’ हाल के दिनों में पंगा भी चल रहा, इसलिए गुरुजी को यह भी पता है कि उनकी छोटी सी भूल उन्हें सीएम से ‘दागी’ बना कोड़ा के साथ बीते हुए पल के नगमे गाने को मजबूर कर सकती हैं। इसलिए उन्होंने ‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’ की कहावत से सीख लेकर अपने युवराज को सत्ता के नवटवरों की पहरेदारी का जिम्मा सौंपा है, लेकिन गुरुजी यह भी जानते हैं कि युवराज युवा हैं, और युवा अवस्था में अक्सर कदम बहक जाया करते हैं। ऐसे में प्रेस कांफ्रेंस तक में झपकी मार अपनी थकावट का अक्सर इजहार करने वाले गुरुजी अब योग के बूते ‘कोड़ा प्रकोप’ से दूर रहने का प्रयत्न कर रहे हैं। क्योंकि सत्ता तो सत्ता है, हाथ में है तो हथियार है, चली गई तो..।
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