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आमरा के पोरिबोरतोन चाई। पोरिबोरतोन पोसोंदो न आसले पांच साल बाद आबार पोरिबोरतोन होबे…!’
पेशे से शिक्षक भक्तरंजन कुंडू ने अगर यह बात झारखंड या कहीं ओर कही होती तो जेहन में न अटकती, लेकिन यह चर्चा लाल दुर्ग पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हो रही थी। वहीं पुरुलिया जहां पिछले विधानसभा चुनाव तक कुल 11 में से 10 सीटें वाम दलों के कब्जे में थीं और जहां लाल झंडा छोड़ कोई और झंडा या पोस्टर लगाने की हिम्मत नहीं करता था। कोलकाता में वाम मोर्चे की सरकार थी, तो पुरुलिया में माकपा के नेता ‘कामरेडÓ खुद सरकार थे। वोट उनके हुक्म पर गिरता था, पंचायत प्रधान उनके इशारे पर दस्तखत करता था। उस पुरुलिया में शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस का बड़ा झंडा लहरा रहा था, पोस्टर भी हर दरवाजे की शोभा बढ़ा रहे थे।
हो भी क्यों नहीं पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में माकपा ढेर जो हो चुकी है। पुरुलिया के 9 में (परिसीमन के बाद) से 7 पर वाम दल को शिकस्त मिलीं, सिर्फ दो सीट पर इज्जत बच सकी। हालांकि अब जब चुनाव परिणाम आ चुके हैं, बावजूद इसके वामपंथियों की दहशत का आलम ऐसा कि पुरुलिया में टीएमसी की जीत जश्न भी डर-डर कर मनाया जा रहा।
शुक्रवार को पुरुलिया पोलिटेक्निक (मतगणना केंद्र) को छोड़ दिया जाए तो जश्न का माहौल पूरे टाउन में ठंडा-ठंडा ही दिखा। लाल दुर्ग रहे पुरुलिया में आतंक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कामरेडों के हार की चर्चा करते वक्त भी लोग इधर-उधर जरूर देख लेते। लेकिन हां…, इस बार लोगों के मुंह पहले की तरह सिले नहींहैं। साफ दिखा कि पश्चिम बंगाल मेंं ‘पोरिबोरतोनÓ (परिवर्तन) हो चुका है। लाल दुर्ग में ममता के ‘मां, माटी आर मानुषÓ का पॉलिटिकल इंजीनियरिंग काम कर गया और लोग इस परिवर्तन का स्वागत भी करते दिखे। लेकिन…! लोगों ने ममता बनर्जी की सरकार से कोई दिवास्वप्न भी नहीं पाल रखा है। हां खुश जरूर हैैं, बात-बात पर इस पोरिबोरतोन को इतिहास की संज्ञा भी दे रहे हैैं, …पर ममता के लिए उनके पास सवाल भी हैैं? पुरुलिया बस स्टैंड के समीप होटल व्यवसाय कर रहे रवींद्र देय कहते हैैं -‘बेशक तृणमूल परिवर्तन की बयार में पार हो गया, लेकिन क्या परिवर्तन के लिए ममता के पास कोई कार्ययोजना है…? नहीं..। ममता बनर्जी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हैैं, लेकिन औद्योगीकरण और निवेश के पक्ष में हैैं। शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार के सवाल पर वाम मोर्चा की कारगुजारी की उनकी आलोचना में दम है, लेकिन वो उससे अलग कैसे होंगी इसकी कोई योजना नहीं। माओवाद और दार्जीलिंग के सवाल पर वो कहां खड़ीं हैैं, शायद वह खुद भी नहीं बता पाएंगी।
टीएमसी समर्थक इन सवालों के जवाब में कहते हैैं -‘फिलहाल ये पूछना बेमानी है कि पोरिबोरतोन से क्या होगा? कम से कम इससे लाल दुर्ग के बीचों-बीच स्थित सैकड़ों गांवों से कामरेड का शिकंजा टूटेगा।Ó
पिछले तीन साल के घटनाक्रम का जिक्र करते हुए पुरुलिया टाउन के अधिवक्ता सह तृणमूल समर्थक आदित्य मंडल बताते हैं कि 2006 के विधानसभा चुनाव में अपनी विशाल विजय को माकपा ने औद्योगीकरण और शहरी इलाकों पर अधिक ध्यान देने की अपनी रणनीति की जीत समझा। लेकिन गांव व ग्र्रामीणों के दर्द को अनसुना कर दिया। नतीजा, नंदीग्र्राम और फिर सिंगूर आंदोलन ने वाम मोर्चे के तिलिस्म को ध्वस्त कर दिया। वकील साहब कहते हैैं कि दो साल पहले तक पुरुलिया में ममता बनर्जी की पार्टी का एक भी कार्यकर्ता नहीं था, लेकिन रेलमंत्री बनने के बाद गांव में बढ़ी ममता की साख ने बिना किसी प्रलोभन के लोगों को 34 साल के ‘वाम कालÓ के इतिहास को इतिहास तक ही समेट देने की ताकत दी।
पुरुलिया में चाहे वह होटल हो, बस स्टैैंड हो, या फिर चाय वाले की दुकान, हर तरफ इस पोरिबोरतोन शब्द का जुमला बंगाल की जनता के उस सोच को प्रदर्शित कर रहा था जो साढ़े तीन दशक से एक ही सरकार को देखते-देखते थक गया।
तृणमूल कांग्र्रेस के पुरुलिया जिला सदस्य तपन हलधर कामरेड राज के खात्मे का लिए पूरे बंगाल ने ताकत झोंक दी। कामरेड की आज्ञा के बिना थाने में एफआइआर तक नहीं होती थी, लेकिन अब हालात बदलेंगे। इसकी उम्मीद आवाम को है।
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